Saturday, April 9, 2011

ram ram

उन चरणों की भक्ति-भावना
मेरे लिए हुई अपराध।
कभी न पूरी हुई अभागे
जीवन की भोली सी साध॥

मेरी एक-एक अभिलाषा
का कैसा ह्रास हुआ।
मेरे प्रखर पवित्र प्रेम का
किस प्रकार उपहास हुआ॥

मुझे न दुख है
जो कुछ होता हो उसको हो जाने दो।
निठुर निराशा के झोंकों को
मनमानी कर जाने दो॥

हे विधि इतनी दया दिखाना
मेरी इच्छा के अनुकूल।
उनके ही चरणों पर
बिखरा देना मेरा जीवन-फूल॥

Thursday, March 31, 2011

संसार का चिंतन

संसार का चिंतन चिंताग्रस्त करता है, और भगवान का चिंतन सभी चिंताओं से मुक्त करता है।

संसार में हर व्यक्ति चिंतन करता है, चिंतन किये बिना कोई व्यक्ति एक क्षण भी नहीं रह सकता है, संसार के चिंतन से व्यक्ति संसार को प्राप्त होता है, और भगवान चिंतन से व्यक्ति भगवान को प्राप्त होता है।

जब व्यक्ति भगवान का चिंतन करता है तो संसार का चिंतन नहीं होता है, और जब व्यक्ति भगवान का चिंतन नहीं करता है तो संसार का चिंतन स्वतः ही होने लगता है।

इसलिये व्यक्ति को हमेशा यह जानने का प्रयत्न करना चाहिये कि उसके मन में कौन सा चिंतन चल रहा है।

Wednesday, March 30, 2011

जय श्री कृष्णा....



संसार का चिंतन चिंताग्रस्त करता है, और भगवान का चिंतन सभी चिंताओं से मुक्त करता है।

संसार में हर व्यक्ति चिंतन करता है, चिंतन किये बिना कोई व्यक्ति एक क्षण भी नहीं रह सकता है, संसार के चिंतन से व्यक्ति संसार को प्राप्त होता है, और भगवान चिंतन से व्यक्ति भगवान को प्राप्त होता है।

जब व्यक्ति भगवान का चिंतन करता है तो संसार का चिंतन नहीं होता है, और जब व्यक्ति भगवान का चिंतन नहीं करता है तो संसार का चिंतन स्वतः ही होने लगता है।

इसलिये व्यक्ति को हमेशा यह जानने का प्रयत्न करना चाहिये कि उसके मन में कौन सा चिंतन चल रहा है।

Sunday, March 27, 2011

जो
मृत्यु के बाद भी तुम्हारे साथ रहेगा उस आत्मा का ज्ञान कर लो…जीवन लाचार मोहताज हो जाये उसके पहले जीवन मे परमात्म सुख की पूंजी इकठ्ठी कर लो…।lकर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना हैखिला पिला के देह बढाई वो भी अग्नि मे जलाना है…कर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना है॥

Friday, December 17, 2010

प्रेम भिक्षां देहि!!प्रेम भिक्षां देहि!!प्रेम भिक्षां देहि!!

हे परम प्रियतम पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण!
तुमसे विमुख होनेके कारण अनादिकालसे हमने अनन्तानन्त दुःख पाये एवम पा रहे
हैं। पाप करते-करते अन्तःकरण इतना मलिन हो चुका है कि रसिकों द्वारा यह
जाननेपर भी कि तुम अपनी भुजाओंको पसारे अपनी वात्सल्यमयी-दृष्टसे हमारी
प्रतीक्षा कर रहे हो, तुम्हारी शरणमें नहीं आ पाता।

हे अशरण शरण!
तुम्हारी कृपाके बिना तुम्हें कोई जान भी तो नही सकता। ऐसी स्थितिमें हे
अकारण करुण! पतितपावन श्रीकृष्ण! तुम अपनी अहैतुकी कृपासे ही हमे अपना लो।

हे करुणा सागर! हम भुक्ति-मुक्ति आदि कुछ नहीं माँगते, हमे तो केवल तुम्हारे निष्काम प्रेमकी ही एकमात्र चाह है।

हे नाथ! अपने विरदकी ओर देखकर इस अधमको निराश न करो।

हे जीवनधन! अब बहुत हो चुका, अब तो तुम्हारे प्रेमके बिना यह जीवन मृत्युसे भी अधिक भयानक है। अतएव-

प्रेम भिक्षां देहि!!प्रेम भिक्षां देहि!!प्रेम भिक्षां देहि!!

Saturday, December 4, 2010

hari om

हम लोग प्रतीति में बह जाते हैं। प्रतीति माने दिखने वाली चीजों में
सत्यबुद्धि करके बह जाना। प्रतीति बहने वाली चीज है। बहने वाली चीज के
बहाव का सदुपयोग करके बहने का मजा लो और सदा रहने वाले जो आत्मदेव हैं
उनसे मुलाकात करके परमात्म-साक्षात्कार कर लो, बेड़ा पार हो जायेगा।
दोनों हाथों में लड्डू हैं। प्रतीति में प्रतीति का उपयोग करो और
प्राप्ति में स्थिति करके जीते जी मुक्ति का अनुभव करो।

हम लोग क्या करते हैं कि प्राप्ति के लक्ष्य की ओर नहीं जाते और प्रतीति
को प्राप्ति समझ लेते हैं। यह मूल गलती कर बैठते हैं। दो ही बाते हैं,
बस। फिर भी हम गलती से बचते नहीं।
=============================================================
कर्ज से मुक्ति!
कर्ज से शीघ्र मुक्ति पाने के लिए हर बुधवार के दिन वट वृक्ष के मूल में
घी का दीप जला कर रख दें| इससे कर्जे से शीघ्र मुक्ति मिलेगी| और बुधवार
के दिन खाने में मूँग या मूँग की दाल लें|

श्री सुरेशानंदजी, उज्जैन २१अक्टूबर
============================================================
अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ 'महायोगराज गुगल' गोली का प्रयोग करें।

इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण
विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि
मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल
रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर में शक्ति
आती है व कांति बढ़ती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।

विधिः 480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाये के दूध में, दूध गाढ़ा
होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण
प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केसर, वंशलोचन, मोचरस,
जटामांसी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग,
कंकोल (कबाब चीनी), शुद्ध भिलावे की मिंगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा,
गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5-7.5 ग्राम की मात्रा में लें। रस
सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5-7.5 ग्राम की
मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध
किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब
चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें,
लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें।
कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाये। इस समय पाक के नीचे
तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को चूल्हे
से उतार लें।

परीक्षणः पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब
वह कलछी से उठाने पर तार-सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद
पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फैलता नहीं। ठंडा
होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते
हैं।

पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के
बर्तन में भरकर रखें, प्लास्टिक में नहीं। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद
या गाय के दूध के साथ लें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 29,30.
===========================================================
शरीर की मजबूती के लिए
रात को ५ खजूर पानी में भिगा दो । सुबह दूध के साथ या ऐसे ही लो । इससे
लौह तत्व व कैल्शियम बढेगा । महीने में १०-१५ दिन खाओ । इससे शरीर की
कमजोरी दूर होंगी ।
============================================================
आदमी में तामसी और राजसी वृत्ति जब जोर पकड़ती है तो वह खिन्न, अशांत और
बीमार होता है, उद्विग्न होता है। सब कुछ होते हुए भी दरिद्र रहता है और
जब सत्त्वगुण बढ़ता है तो सब कुछ होते हुए अथवा कुछ न होते हुए भी महा
शोभा को पाता है।
=============================================================
आदमी पहले भीतर से गिरता है फिर बाहर से गिरता है। भीतर से उठता है तब
बाहर से उठता है। बाहर कुछ भी हो जाय लेकिन भीतर से नहीं गिरो तो बाहर की
परिस्थितियाँ तुम्हारे अनुकूल हो जायेंगी।

Friday, December 3, 2010

टेक एक रघुनाथ

न कोई संगी साथी ऐसा, जो जीवन में साथ चले,
इन मेलों में रहकर, मजबूर हम अकेले चले |
राम गयो रावण गयो, ताको बहु परिवार |
कह नानक थिर कछु नहीं, स्वप्नेहु ज्यों संसार ||
भय नाशन दुरमति हरण, कलि में हरि को नाम |
निश दिन नानक जो जपे, सफल होवहि सब काम ||
जे को जनम मरण ते डरे, साध जना की शरणि पड़े |
जे को अपना दुःख मिटावे, साध जना की सेवा पावे ||
संगी साथी चल गए सारे, कोई न निभयो साथ |
कह नानक इह बिपत में, टेक एक रघुनाथ ||